एक सफर ऐसा भी..
एक सफर ऐसा भी..
कुछ सफर ऐसे होते है ज़िन्दगी के जो Safar कम Suffer ज़्यादा होते है. ऐसा कुछ मेरे साथ भी हुआ. मैं नई दिल्ली जा रही थी रात की गाडी से, सीट कन्फर्म न होने के कारन र ए सइ मैं चली गयी थी . अब क्या आधी सीट और TT का इंतज़ार . काफी लम्बा समय था क्योंकि TT को बाकी के लोगों ने घेर रखा था क्योंकी वोह उनकी आखिर उम्मीद बनकर आया था. इसी इंतज़ार की घडी मैं मेरी नज़र सामने लेते हुए 6 लोगो पर पढ़ी. बातों से लग रहा था की किसी गाओं से दिल्ली जा रहे थे . थोड़ी रात होने पर पता पढ़ा की ट्रैन की सुविधाओं से कुछ ज़्यादा ही नाराज़ थे . एक उप्पर वाली सीट पर लेते लेते बोलै की बताओ ट्रैन मैं बोतल रखने का स्टैंड नहीं तोह उसी को मात देते हुए दूसरा बोलै की कम्बल तोह ऐसा है मानो आलू की बोरी लेली हो . इतने मैं सबसे उत्तेजित बैठा हुआ उनका साथी बोलै की मैंने स्टेशन से चाणक्य नीति पर किताब ली है कहो तोह कुछ सुनौ जिसपर सबने सोने का ड्रामा किया और बिचारा किताब को वोह देखता रहा. कुछ देर चुपी के बाद वही बात घूम फिरकर मोदी जी पर अब गयी . एक बोलै क i बताओ मोदी जी ने कहा था की सीट बड़ी करेंगे तोह दूसरा बोलै की ये तोः वही बात हो गयी की ऊँची दूकान और फीके पकवान और सब लग पड़े तारीफ करने पर. एक बोलै की लगाओ मोदी जी को वीडियो काल तोः दूसरा उठकर बोलै की भाई हॉटस्पॉट तोः दो . अब क्या ध्यान मोदी जी से हटकर सारे टेलीकॉम कम्पनीज पर आ गया था .
लगे सब के सब अपने अपने नेटवर्क की बुराई करने पर और सबसे ज़्यादा स्कोर बोर्ड पर नंबर पाने वाले थे JIO साहब . सबसे लोअर सीट पर सोने वाला बोलै की JIO की स्पीड ट्रैन मैं काम क्यों होती है जिसपर सबने मिलकर अपने अपने नेटवर्क की तुलना की . ये सब का सिलसिला चल ही रहा था की ऊपर बर्थ वाला फिर से बोलै की भाइयों चाणक्य नीतियां सुनोगे जिसपर सबने अपने अपन e फ़ोन खोल लिए और उसको चुप करा दिया और वोह बिचारा अपनी किताब पढ़ने लगा . ऐसा लग रहा था मानो कहीं वोह उन नीतियों को अगली सुबह उनपर आज़मायेगा . ये सब चल ही रहा था की TT ने राजा महाराजा की तरह एंट्री मारी . और फिर क्या था मिडिल बर्थ वाला बोलै की सर क्या ट्रैन बनायीं है इसमें कुछ नहीं है जिसपर TT ने बोलै की क्या नहीं है भाई तोः उसने पलटकर बोलै की यहाँ पीने के पानी की सुविधा नहीं है और नहीं कुछ खाने को है . TT ने अपने रजिस्टर से नज़रे उठाकर चश्मे के उप्पर से देखकर बोला की पानी ज़्यादा पीने का मैं है तोः अगले स्टेशन पर उतरके पी लेना . और फिर क्या था बाकी लोगों की हसी निकल गईi. और मिडिल बर्थ वाले का मुँह छोटा सा हो गया था . अब जैसे जैसे वक़्त गुज़रा सब अपने अपने फ़ोन पर लग गए और मैं दरवाजा की तरफ देखने लगी की शायद मुझे एक सीट मिल जाये . शायद भगवन को शांति मंज़ूर नहीं थी की एकदम से ट्रैन मैं कहीं से एक चूहा आ गया . फिर क्या उन 6 लोगों ने ट्रैन सर पर उठा लिया . सबसे लोअर बर्थ वाला बोला की भैया बताओ ab इसकी कमी थी कहीं ये मेरा 2 हज़ार का बैग और 5 हज़ार के जूते न खा ले इससे मुझे लगा की अब तक तोः सबको पता चल गया होगा की पूरे डिब्बे मैं इनसे मार कोई न था वही दूसरा बोला की मैंने अपने लिए महंगी वाली जैकेट ली है कहीं वोह न खा ले . उतने मैं चाणक्य नीति वाला उप्पर से बोला की चाणक्य कहते है जो जैसे प्रवर्ति वाले लोग होते है उनके साथ वैसा ही बर्ताव होता है . उतने मैं उसका साथी बोला की ये तोः अब लाइट बंद करके ही मानेगा . उस चूहे की शामत थी क्योंकि सब उसको ढूंढ़ने मैं लग गए थे और वही चाणक्य नीति वाला मुस्कुराते हुए सो गया. और मेरा क्या चाणक्य की कही हुई बात सच हुई, मुझे सीट नहीं मिली और रात भर मैंने किसी के साथ सीट शेयर की. जो जिस प्रविर्ती का होता है उसके साथ वैसा ही होता है. और वोह सफर मकेरी ज़िंदहि का एक यादगार सफर बन गया.
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